प्रेम दोहे
ढाई आखर प्रेम के , पढ़ मन उपजे प्रेम ।
ओम कहां अब ढूंढता , सबकी चाहे क्षेम ।।
ओम प्रीत की डोर से , बँध जाएं सब लोग ।
ऐसा सुख नहीं जगत में , जनमानस ले भोग ।।
मीठी वाणी बोल के , सबको लेय लुभाय ।
रे मन तू ऐसा बने , कर ले प्रेम सुभाय ।।
जात-पाँत को छाँड़ि के , मन में सबन बसाय ।
प्रेम लगन ऐसी लगे , बैर दूर हो जाय ।।
लोक रंजन धर्म बड़ा , करें सभी से हेत ।
जनमानस में पैठकर , कर जायें परहेत ।।
प्रेम पगा सो जो जना , पाये सबका प्रेम ।
जाए जिस भी ठौर में , मिले उसी से प्रेम ।।
दिल से दिल जब भी मिले , पाये बहुत सुकून ।
ओम खिल जाय प्रेम पुष्प , बाढ़े प्रीति प्रशून ।।
ओमप्रकाश भारती ओम्
बालाघाट मध्य प्रदेश