प्रेम – दोहावली
उमर थकाये क्या भला, मन जो रहे जवान.
बूढ़ी गंडक में उठे , यौवन का तूफ़ान .
मन का मेल ही मेल है, तन की दूजी बात.
जहाँ प्रीत की लौ जले, होत है वहीँ प्रभात.
मन के सोझा क्या भला, तन की है अवकात.
तन सेवक है उमर का, प्रीत का मन सरताज.
तन की चाहत वासना,मन की चाहत प्रीत.
प्रेम हरि का रूप है, प्रेम धरम और रीत.
तन में एक ही मन बसे, मन में एक ही मीत.
प्रीत नहीं बाजी कोई, नहीं हार – ना जीत.
जस पाथर डोरी घिसे, तस – तस पड़त निशान.
मापतपुरी का फलसफा, प्रेम ही है भगवान.
………… सतीश मापतपुरी