प्रेम : तेरे तालाश में….!
” आने की तारीख है यहां…
जाने का कुछ पता नहीं…!
कुछ पल ही शेष है यहां…
जो भी हो, यही पल ही विशेष है यहां…!
कुछ खट्टे-मीठे अनुभवों की घटनाएँ…
यादों के पन्नों में अवशेष है यहां…!
मगर कहां, कैसे ढूंढ़ू तुझे..
तेरा स्थान है कहां…?
कहां से उलटी गिनती शुरू करूं कि…
तुम से मिल सकूं…!
कब, कहां से शुरूआत हो कि…
तुम से मुलाकात करूं…!
क्या-क्या अपने पास रखूं कि…
कुछ दूर तेरे पास चल सकूं…!
मैं शून्य भावों का मिट्टी-घड़ा,
कौन सा अक्षय-पात्र बनूं कि…?
तुम को अपने साथ रखूं…! ”
” कहां से उलटी गिनती शुरू करूं कि…
तुम से मिल सकूं…!
कौन सी राह की निर्माण करूं कि…
अथक तुम्हारे साथ चलूं…!
कौन से राग की अभ्यास करूं कि
मैं तेरे स्वर की गीत लिखूं…!
किस अनुष्ठान की, कब आरंभ करूं कि…
तेरे संसर्ग-साथ रहूं…!
कौन सी प्रवृत्ति, कितनी गति,
कैसे मैं अनुमान करूं कि…
आस-पास परिक्रमा कर सकूं..! ”
**************∆∆∆*************