प्रेम जाल में फसा के मुजको….
प्रेम किया था तुझसे जो….
तू अनपढ सा मचल गई
नैन मटका किया जो तुझसे….
आखिर तुजको भाया न
प्रेम जाल में फसा के मुजको….
अंधेरी रातों में छोड गई
जबसे देखा है तुमको….
नींद न आती रातो में
तुम न जाने कैसे भूल गई…
वो राते – राते की बाते
मै तो भूल न पाया तुमको….
न ही वो अंधेरी राते
जितना तुमको प्यार किया….
अब मेरे बस की बात नहीं
कलम उठा ली है लिखने को….
लिखता हूं बस तेरी बाते…
लेखक – कुंवर नितीश सिंह (गाजीपुर)