*प्रेम जन्म जन्म का*
ना जाने कितने जन्मों से है तेरा मेरा नाता,
चाहकर भी मैं इसे समझ ना पाता,
प्रेम के बंधन में बँधे हम दोनों निस्वार्थ से,
फिर भी तुम्हें देख यही प्रश्न मन में उठ जाता,
तुम चौदहवीं की चंद्रमुखी सी मैं तमस भरा अमावस सा
फिर कैसा ये तेरा मेरा नाता,
रूप-रंग जाति-पाती के बंधन से मुक्त,
सोच के ये सब बस मैं मंद-मंद मुस्काता,
भावों को हृदय में छिपा किसी से ना कह पाता,
शायद तुम मुझे मिली हो…..
पिछ्ले जन्मों के पुण्य कर्मों के प्रताप से,
फिर से निगाह तुम पर गई,
फिर से वही प्रश्न हृदय को कचोटता सा,
तुम चौदहवीं की चंद्रमुखी सी मैं तमस भरा अमावस सा
पर खुश हूँ ये सोचकर तुम हो तो सही,
मेरी कोरी कल्पना नहीं,
प्रत्यक्ष रूप में मेरे ही सामने,
तुम गौर वर्ण सी,
पूनम के चाँद सी शीतलता लिए,
धवल-धवल देदीप्यमान सी तेरी आभा,
हिरणी से चंचल तेरे नयन,
स्याह कुंचित कुन्तल,
दिशाओं को आच्छादित करती,
तेरी ये मधुर सी मुस्कान,
मृदुल सौम्य सा तुम्हारा हृदय,
मेरे हृदय को फिर-फिर सोचने को विवश करता है,
तुम चौदहवीं की चंद्रमुखी सी मैं तमस भरा अमावस सा
(*प्रेमिका अंश*)……
तुम क्यूँ कहते हो खुद को अमावस से,
तुम हो हृदय के स्वामी हृदयेश्वर मेरे,
तुम ही हो चाँद मेरे मैं चन्द्रिका सी,
तेरी ही आँखें देखें मुझे रूपसी सी,
सूरत का मोह नहीं प्रेम है सुन्दर सीरत से,
तभी बँधे एक दूजे से जन्म-जन्मांतर के बंधन में,
फिर से ना कहना तुम……
तुम चौदहवीं की चंद्रमुखी सी मैं तमस भरा अमावस सा
7जून2022 7:21am
✍माधुरी शर्मा “मधुर”
अंबाला हरियाणा।