प्रेम छाया
?प्रेम छाया ?
प्रेम का अथाह सागर है ,
मेरी जिंदगी
कोई भी गोताखोर नहीं पा सकता मुझे फिर भी कुछ लोग !
,,,ना जाने क्यों !!
मेरे प्रेम को इतना हल्का ले लेते हैं !!
दूर छितिज तक फैले ..
इस प्रेम महासागर को
और तो और
कई -कई तो करने लग जाते हैं
मेरे प्रेम का आंकलन
प्रेम के इस जटिल गणित की जिंदगी यकीनन ही वह नहीं जानते कि
सही – सही
कभी नहीं
मिल पाती ,उन्हें
“”प्रेम छाया “”
जिनको मिल जाया करती है
अक्सर
प्रेम घुटन जिंदगी की तनहाइयों में…
✍ चौधरी कृष्णकांत लोधी (के के वर्मा बसुरिया )नरसिंहपुर मध्य प्रदेश