प्रेम गीत
गीत प्रेम का हम गुनगनाने लगे हैं
जब से देखा तुमको चाहने लगे है
अब से पहले जिंदगी में बेफिक्र थे
तुम्हें पाने के फिक्र सताने लगे है
घोड़े बेचकर हम सो जाया करते थे
जागती आँखों में ख्वाब आने लगे है
दोस्तों की दोस्ती में खूब मशगूल थे
अब दोस्तों के उलाहने आने लगे हैं
कोलेज में बहुत कम जाया करते थे
छुट्टी के दिन भी कोलेज जाने लगे हैं
शब्द परिणय से भी परहेज करते थे
स्वप्न शादी के नैनों में सजाने लगे हैं
फुरसत लम्हों में खूब मौजें करते थे
हर लम्हा क्षण तुम याद आने लगे हैं
जिंदगी पहले मेरी कोरी किताब थीं
प्रेम रंगों के सबरंग अब चढने लगे हैं
सूरत ही नहीं तेरी सीरत का मरीद हूँ
तस्वीर तेरी के रंग अब छाने लगे हैं
जीना नहीं अब गवारा है तेरे बिन
तुम्हें खो देने के डर सताने लगे हैं
गीत प्रेम का हम गुनगनाने लगे हैं
जब से देखा तुमको चाहने लगे हैं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत