प्रेम गीत
चंचल चितवन रूप देखकर, मैं अपना दिल हारा हूँ
प्रेम पिपासा में भटके जो, वो आशिक आवारा हूँ
मेरे मन के तार छेड़ता
है गोरी तेरा यौवन
तुझको छूने से होता है
मेरे तन में स्पंदन
प्रेम पिपासा में मन आकुल
सुनलो अब दिल की धड़कन
मुझको गले लगालो अपने
बन जाऊँ मैं चन्दन वन
तुम पापा की परी और मैं, माँ का राज दुलारा हूँ
मेरी नींद उड़ा देती है
छन-छन करती पग पायल
अधरों पर मुस्कान तुम्हारी
करती है अंतस घायल
मस्त मगन मैं हो जाता हूँ
देख तुम्हारा दृग काजल
कोई दीवाना कहता है
कोई कहता है पागल
नेह भरे अनुबंध खोजता, मैं प्रेमी बेचारा हूँ
तुमहो कोमल कुसुमकली सी
भँवरे करते हैं गुंजन
मुझसे प्रिय सम्बंध बनालो
लेकर हमसे सात वचन
पतझड़ को मधुमास बना दो
महका दो मेरा गुलशन
बरस पड़ो बन प्रेम बदरिया
निकल न जाए ये सावन
तुम हो नदिया का मीठा जल, मैं सागर तो खारा हूँ
अभिनव मिश्र अदम्य
शाहजहाँपुर, उ.प्र.