प्रेम गीत :- वक़्त का कारवां…
वक़्त का कारवां…
वक़्त का कारवां,
जैसे थम सा गया…
तुम मिले हो यहाँ..
जब मिले हो यहाँ..
रातें कटती नहीं थी,आहें भरता था मैं…
आहट सुन-सुन के,करवट बदलता था मैं…
तन्हा रातों में, यूँ ही भटकता था मन…
तेरी मयकश अदाओं को,तकता था मन…
मन महफिल में जाकर भी, रमता नहीं…
साकी देती थी हाला,पर मैं पीता नहीं…
वक्त यूँ ही गुजरता था,मैं किससे कहूँ…
दिल की बातें ये अपनी,मै किससे कहूँ…
तुम रुको तो यहाँ…
तुम रुको तो यहाँ..
वक़्त का कारवां…
वक्त आतुर हैं चलने को,टिक टिक घड़ी…
रास आता तुम्हीं से,मेरा खुदा भी तुम्हीं…
बातें करता है हर कोई,पर तुमसा नहीं…
गीत गाता है हर कोई,पर तुमसा नहीं…
साथ चलने का फलक तक,मैं करता हूँ दुआ…
दिल रुक-रुक कर चलता है,जब तू ना छुआ…
सब्र रहता नहीं है.अब तो मेरा यहाँ…
सब हैरान हैं आंसू भी,निकलता कहां…
मिल गया है जहां..
तुम मिले जो यहाँ ..
वक़्त का कारवां…
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १२/१०/२०२४ ,
आश्विन, शुक्ल पक्ष,दशमी ,शनिवार
विक्रम संवत २०८१
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