प्रेम के दो वचन बोल दो बोल दो
प्रेम के दो वचन बोल दो बोल दो
जग में समता का रँग घोल दो घोल दो
देश बाँटो नहीं जात में पात में
तुम ह्रदय के पटल खोल दो खोल दो
देखो मेरी मुहब्बत की तुम इंतिहा
सिर्फ़ दौलत से मत दिल मेरा तोल दो
सामने आने दो प्यार की असलियत
बीच में ही नहीं खोल तुम पोल दो
एकरसता से बचना अगर चाहते
अपने किरदार को तुम नया रोल दो
माना तुमको ज़रुरत नहीं है मेरी
फिर भी मेरी मुहब्बत को कुछ मोल दो
‘अर्चना’ जिनको सुर ताल आता नहीं
तुम अरे हाथ में उनके मत ढोल दो
डॉ अर्चना गुप्ता