प्रेम के जसाले
प्रेम के जसाले
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1
तू
खुली
किताब
की उलझी
सी पहेली है
तुझे पढ़कर
मैं कैसे सुलझाऊँ
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2
मैं
खुली
किताब
का उड़ता
हुआ पन्ना सा
स्पर्श तेरे नर्म
हाथों का सदा पाऊँ
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3
मैं
और
तू, हम
बन कर
हमसफर
एक रहगुजर
साथ चलते जाएं
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4
ये
मेरा
जीवन
तेरे लिए
हर जन्म में
बस तेरे लिए
आरक्षित, कुर्बान
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5
तू
मेरे
सांसों की
है मल्लिका
बिछ जाऊँ मैं
तेरी पलकों पे
महकता चमन
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6
तू
खिले
फूलों की
सुगंधी सी
तेरी लेकर
भीनी सी महक
गद गद हो जाऊं
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7
मैं
करुं
तेरा ही
जीवन में
इन्तजार
चंद सांसे मेरी
है मनसीरत की
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)