प्रेम के चेहरे
प्रेम के की चेहरे
रहता जिस घर आदर सम्मान
बन सुमन सुगंध फैलाती हूं
बनदल बादलों के में नित्य
स्नेह जलधारा बरसाती हूं।
मैं स्त्री हूं , मैं नारी हूं
मुझे तिल- तिल मरना आता है।
देखकर सुखी जीवन औरों को
मुझे मर कर जीना आता है।
मैं जननी हूं, मैं माता हूं
मुझे पालना- पोषण आता है
दे मुझे यदि नित्य कोई विष
मुझे दूध पिलाना आता है।
मैं अर्धांगिनी हूं मैं भार्या हूं
मुझे सतीत्व निभाना आता है
जीना पड़े यदि टूट टूट कर
मुझे घर संभालना आता है।
मैं सच्ची भारतीय नारी हूं
मुझे धर्म निभाना आता है
पढ़े मुसीबतों का पहाड़ी यदि
मुझे कर्म कमाना आता है।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर (हि० प्र०)