प्रेम के कसीदे
हसरतें तो बहुत है,आज भी.
मन शरारतें, छोडता नहीं,
शरीर कसरतों से बाज़ आता.
नहीं.
ये समस्या मेरी है तुम्हारी नहीं.
पसंद है मुझे, रास तुम्हें आती
नही.
तुम चाहती हो तुम्हारा बने रहूं
इसी कशमकश में चूक जाता हूँ
खेल के मैदान में इधर या उधर
रहूं.
दौलत का वरण कर आगे बढ़े.
तो इस दुनिया को, विराम देता हूँ
प्रेम के कसीदे है,जहां भी खिंचते है.
वहीं पर घर,परिवार, समाज सा फैल
जाता हूं