‘प्रेम की होली ‘
न आलोचक हूं, न पाठक हूं, न साहित्यकार हूं और न ही रचनाकार हूं ।
मैं अनुभव का साधारण सा विद्यार्थी हूं और मैं लोगों की तरह सबके सम्मुख प्रेम रूपी भण्डार को अथवा प्रेम शब्द के तात्पर्य को दर्शाना चाहता हूं ।
प्रेम क्या हैं ? हम अपनें भाई – बन्धु , नाते – रिश्तदार , मित्र सभी से तो प्रेम करते हैं, प्रेम तो वह प्रसाद व समन्दर हैं, जिससे जितना ही बाटो उतना ही विकसित होता रहता है । अगर कोई व्यक्ति कुरूप है और उसके प्रेम रूपी रत्न है तो वह हर एक व्यक्ति की नजरों में खूबसूरत है ।
इस समय होली का पर्व भी है जो प्रेम का पर्व माना जाता है ,होली वह पर्व है जिसमें मनुष्य के बीच की सारी भेदक दीवार टूट जाती है और मनुष्य केवल मनुष्य रह जाता हैं ।
आज की दुनिया में अगर किसी चीज का अभाव व कमी है तो वह है पवित्र प्रेम ,प्रेम की कोई सीमा नहीं है। इस पर बहुत ही चर्चाएं हुई है बल्कि होती रही है जैसे – आजकल नेताओं की चर्चाएं होती है। मैं यहां स्पष्ट कह देना चाहता हूं कि प्रेम का अर्थ सिर्फ युवक , युवती के बीच पैदा होने वाला आकर्षण ही नहीं, अपितु प्रेम तो वह है जो अपने परिवार के हर सदस्य के लिए उमड़ता है । प्रेम – गीता,कुरान की बातें पवित्र है प्रेम वासना नहीं है प्रेम तो वह फूल है जो मुरझाने के बाद भी महकता है प्रेम का कोई एक रूप नहीं है वह सातों रंगों की तरह ही बिखरा हैं ।
प्रेम आदर व सम्मान देने वाले व्यक्ति में परम परमेश्वर विष्णुजी का वास होता है । उसके वाणी से फूलों की रिमझिम बरसात होती है । आज के इस भाग दौड़ में धन दौलत की कोई कमी नहीं है, पर शायद व्यतित प्रेम रूपी सुख से वंचित है । वह रुपयों में से आ जा रहा है और मै प्रेम रूपी जल में स्नान कर रहा हूं, इस स्नेह प्रेम रूपी निरझर जल की लहरें उस आसान व्यक्ति के निकट तक जाती हैं पर वह अपने धुन में उस प्रेम की गठरी से अनजान रहता हैं ।
प्रेम एक उन्मुक्त अनुभूति हैं जिसे सभी नहीं पा सकते हैं, उदाहरण के रूप में एक वृक्ष को ही लें लीजिए इसका प्रेम व स्वभाव परमार्थी है जो अपने द्वारा उत्पन्न किये हुए फलों व फूलों को चख नहीं सकता अपनी छाया की निर्मल शान्ति वह खुद नहीं पाता बल्कि दूसरों पर न्यौछावर करता है , उसका प्रेम अनन्त हैं पर आज के व्यक्तियों का प्रेम स्वार्थमय हैं वें प्रेम की आड़ में अपना स्वार्थ निकालते है , क्या ऐसा प्रेम सही है ?
आज हमारे दिलों दिमाग में आपसी प्रेम , ईर्ष्या और क्रोध , मद, वासना का स्थान हो गया है। जबकि हमें प्रत्येक व्यक्ति व वस्तु में प्रेम का ही रूप देखना चाहिए ।
प्रेम तो इतिहास की गरिमा व गौरव है जो इतिहास में वर्णित है। प्रेम की कहानी अनेक ही कहानी है , जिंदगी के हर पहलू को समझने के लिए प्रेम का होना आवश्यक हैं ।
होली भी उसी पुनीत प्रेम का प्रतीक हैं, होली जन – जन को एक रेखा में गूंथ देनेवाली है , कुछ लोग इस पवित्र त्यौहार की गरिमा को नष्ट करते है।
इस पुनीत पर्व पर इस दुर्व्यवहार को हमें रोकना चाहिए।
इस अंधकार समाज में प्रेम का प्रकाश होना जरूरी है , किसी व्यक्ति का स्वभाव , व्यवहार , आचरण, संस्कार , परिष्कृत है जो उससे प्रेम एक नजर में हो जाता है ।
वैसे मेरा जन्मदिवस होली के त्यौहार पर ही हुआ था किन्तु दिनांक 9 मार्च था , इसीलिए प्रेम रूपी इस त्यौहार को आत्मसात करने की कोशिश करते रहते हैं।
अन्त में मैं प्रेम की होली में इन खूबसूरत शब्दों की व्याख्या भक्ति और शक्ति से सम्पन्न करता हूं….
होली की अशेष शुभकामनाएं…