प्रेम की भाषा
?प्रेम की भाषा ?
दिक्कतों और मुश्किलों का सिलसिला है ,,
दूसरों का क्या कहे ,जब अपनों से ही फ़ासला है !!
इन फासलों को दूर करने की
कोशिश करता हूं,
मैं कभी
प्रेम के जरिए
पर ना जाने क्यों लोग ??
प्रेम की भाषा
समझते ही नहीं !
सुना था मैंने
“प्रेम की भाषा ”
में बहुत ताकत होती है ,
वह बिछड़ों को मिला देती है ,
भूलों को याद दिला देती है ,
दुश्मनी को मिटा देती है ,
अपनों को अपनों से मिला देती है ,
पर मैं नहीं जानता था
यह “प्रेम की भाषा “ही एक दिन अपनों को अपनों का दुश्मन
और
गैरों को अपना बना देती है!!
✍ चौधरी कृष्णकांत लोधी (के के वर्मा नरसिंहपुर मध्य प्रदेश)