प्रेम की बाजी हार गया
प्रेम की बाजी हार गया (ग़ज़ल)
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दिल प्रेम की बाजी हार गया,
हर बार डूबा ना उस पार गया।
छोड़ा उसे जब से हमने सखा,
सुंदर सलोना सा संसार गया।
बेशक न वो मिल पाए हैं कभी,
वीरान महफ़िल में हर बार गया।
तलवार के आगे डट कर रहा,
वाणी चुटीली से वो मार गया।
रहता सदा मनसीरत है बुझा,
वो जान से प्यारा दिलदार गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)