प्रेम की परिभाषा
हरे कृष्णा आप सब कैसे हैं उम्मीद है बहुत अच्छे होंगे मैं हिमांशी चतुर्वेदी आज जो कविता आपके समक्ष प्रस्तुत करने वाली हूं पहले उसकी थोड़ी रूप रेखा समझा देती हूं
तो यह उस समय की बात है जब राजा राम और माता सीता वनवास काटकर अवधपुरी आए थे
और कुछ प्रजा जनों ने माता सीता पर कटु भाषण किए हैं जहां माता सीता अवधपुरी त्याग कर वनवास को गमन कर रही है
प्रभु राम और माता सीता के मध्य संवाद चल रहा है जहां प्रभु राम अत्यन्त दुखित भाव से कहते हैं कि
“तनिक प्रश्नों पर रोक लगाने क्यों सब कुछ छोड़ कर जाती हो,
तुम पावन हो, मैं साक्षी हूं, फिर क्यों यह ढोंग रचाती हो।
हे सीते तुम बिन मेरा जीना बिल्कुल दुबर हो जाएगा
यदि अवध छोड़कर चली गई तो यह राम नहीं बच पाएगा,
तुमसे कितना वियोग सहा अब और सह ना जाएगा
हे सीते मेरे प्राण बचाओ
अब और अलगाव में न रहा जाएगा।
कुल मर्यादा स्वाभिमान में सबसे विमुख हो जाऊंगा आदेश करो हे सीते तुम मैं आजीवन वनवास बताऊंगा
अरे नहीं चाहिए ऐसी प्रजा जो एक सती पर आक्षेप लगाती हो
तनिक प्रश्नों पर रोक लगाने क्यों राम को छोड़कर जाती हो।
।।अब माता सीता ने प्रभु राम को क्या उत्तर दिया वह भी सुनिए।। की
हे स्वामी सर्वस्व मेरे क्यों इतना विलाप करते हो
पुरुषों में उत्तम होकर भी, एक स्त्री से इतना मोह रखते हो?
स्वामी सीता कोई विकल्प नहीं जिसे प्रजा के विरुद्ध चुन लेंगे आप
सीता तो प्रज्वलित अग्नि है जिसमें मिट जाए युगों के पाप
प्रेम सदा समर्पण मांगे क्या ऐसे प्रेम निभाएंगे ,
मर्यादा को खो देंगे तो कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाएंगे
आने वाले कलयुग में हम फिर कैसा प्रेम बताएंगे
यदि त्याग समर्पण भक्ति खो दी तो चारों युग खिन्न हो जाएंगे
हे नाथ,इस शरीर से आत्मा तक सर्वस्व पर अधिकार तुम्हारा है
स्वार्थी नहीं बन सकते हम क्योंकि सच्चिदानंद प्रेम हमारा है
प्रेम यदि सत्य हुआ तो त्याग अवश्य करना होगा
दो धारी तलवार के भांति हर प्रेमी को चलना होगा
दो धारी तलवार के भांति हर प्रेमी को चलना होगा
सिया राम हमारी प्रेरणा हैं गौरव हैं अभिमान हैं
निष्काम प्रेम के रूप में दोनो साक्षात विद्यमान है
सिया राम हमे बताते हैं कि कैसे वास्तिविक प्रेम किया जाएं
कलुषित आधुनिक युग में कैसे, पतित पावन रहा जाए
चलिए अब मुझे अपने शब्दो को यही विराम देना चाहिए
आप सबसे हाथ जोड़ कर
जय सिया राम कहना चहिए।।
आप सबसे हाथ जोड़कर जय सिया राम कहना चहिए।।
हिमांशी चतुर्वेदी