प्रेम की परिभाषा ।
प्रेम प्रेम सब कोई कहै प्रेम न जाने कोई।प्रेम की इस गँगा मे लगावे डुबकी कोई।।प्रेम अनदर की वस्तु है .प्रेम गुहा अनमोल।कथनी मे आवै नही सकै न कोई तोल ।।प्रेममे ही ईशवर का होता है बास ।प्रेम अगर सचचा है तो ईश्वर तेरे पास।।….।।।।।।।प्रेम ऐसा कीजिए जयो लोटा जयो डोर।अपना गला फसाये कै पानी लावै डोर।। प्रेम जब होता है अपना आपा खोय।सारे बनधन तोड़कर आस मिलन की होय।।