प्रेम का वक़ात
3.5.37
वक्त के दरियों में कुदने की मेरी औकात नही
रक्त के दरिया में नहाने की मेरी सोगात लगी
निश्छल भाव से किसी गैर के मन में समाया था।
रक्त रंजित तन के दाव से वो, गैर घबरा कर किसीओर मन में समायी थी।
छोड़ सकता नही अपने भाव से दोनों मुझको जान से ज्यादा प्यारे है।
बिना उनके मेरा मन तपन ताव से आहिस्ता आहिस्ता वो अपने वजूद से यूना प्यारे है ।
लिखूं कैसे भूप अल्फाज मेरे सोचते-सोचते अधूरे है।
अल्फाज आये मन मेरे अपने भाव से एखरे होगे