प्रेम का बन्धन
प्रेम का बंधन
प्रेम की पावन बगिया से
दो प्रेम के फूल खिले दिल में ।
स्नेह प्यार के बंधन से
मन मगन हुआ अपने मन में ।।
जीवन के सच्चे बंधन से
मन बहा प्रेम सागर की धारा में ।
एक प्रेम के सच्चे सपने से
स्नेह का चहल पहल हुआ मन में ।।
उसकी प्यारी प्यारी खुशबू से
महक का पवन चला जीवन में ।
उसकी पायल की प्यारी छम छम से
दिल धड़क उठा अंतर्मन में ।।
उसकी आंखों की प्यारी काजल से
यूं लगा घनघोर घटा छाई सावन में ।
उसकी होठों की मुस्कानों से
यूं लगा धूप निकल गया अगहन पौष में ।।
उसके मंद मंद मुस्कानों से
ज्येष्ठ का पवन चला दिल में ।
होंठो की प्यारी लाली से
प्रातः का सूर्य उदय हुआ वन में ।।
प्रेम की पावन बगिया से
दो प्रेम के फूल खिले दिल में ।
स्नेह प्यार के बंधन से
मन मगन हुआ अपने मन में ।।
युवा कवि / लेखक
( गोविन्द मौर्या – प्रेम जी )
सिद्धार्थ नगर , उत्तर प्रदेश