प्रेम का प्रथम अहसास
प्रेम का प्रथम अहसास
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सावन की छटा से,बादल की घटा से
किससे मैं पूछू यार ,तेरा पता……………
नजर एक देखा था ,हमने तो राहो में
तवसे है रूठे नैना ,ओर निहारे ना
झलक एक दिखलादे ,अब न सता………(१)
हर ओर देखा ,सारा जग ढूँढा
तुझसा नहीं कोई, दूजा मिला
यो रूठो न हम से ,हुई क्या है खता……(२)
धड़कन है तू ही, स्वासो का रिदम
हमारी मोहब्बत ,खुदा का करम
होगी एक मुलाकात ,कब तू बता……(३)
नींद नहीं है,चैन नहीं है
तेरा ही चेहरा ,बस नजर आये रे
क्या? यही हाल है तेरा ,मुझ को बता……(४)
खामोश नजरें न कुछ कह रही है
दिल को दरद है ,दिल को रहा है
नजर तेरी पाने को ये क्या-क्या न करता…..(५)
खुदा को मनाऊ ,दुआ भी करूँ
तेरे बिना मैं जियू न मरू
मिला दे मेरे यार से ,मेरी कोई न खता……….(६)
उनसे मिलू तो सारी रस्मे भुला दूँ
तोडू सारी कसमे ,मैं खुद को भुला दूँ
लगा लू गले से ,जैसे पुष्प लता……………….(७)
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पहचान उनकी क्या है उनके बारे में कुछ बताता हूँ,देखिए …..
सोलह बरस की ,बाली उमर थी
खुदा की बनाई ,वो रचना सुघर थी
रंग रूप ऐसा ,हो बसंती महीना
मुझको तो लूट गये ,उसके दो नयना
चेहरा है ऐसा ,जो देखता रहूँ
मूरत है हीर की,मैं ऐसा कहूँ
ऊपर से नीचे तक देखा उसे
फिर मेरे चैन का मुझे न पता………(8)
किससे मैं पूछूँ यार तेरा पता……………
राघव दुबे
इटावा (उ०प्र०)
8439401034