प्रेम का ढाई आखर
हर हर गंगे नहाईए प्रेम के ढाई आखर में
महिमा सब गाइए , प्रेम के ढाई आखर की
जीवन का रहस्य छिपा है प्रेम के ढाई आखर में
हर अधूरी प्यास बुझी है प्रेम के ढाई आखर से
भर भर डूबकी लगाइए प्रेम के ढाई आखर में
हर हर गंगे
योगी और मुनि जन डूबे प्रेम के ढाई आखर में
विश्वामित्र की समाधि भंग प्रेम के ढाई आखर से
इसलिए दिल रमाईए प्रेम के ढाई आखर में
हर हर गंगे
प्रेम की मधुशाला पीकर, प्रेमी मन हुआ है तृप्त
जिसके हाथ से छूट गई हाला , वो हुआ है संतप्त
इसलिए कहती हूं पी लो प्यारे प्रेम का ढाई आखर
हर हर गंगे
ऐसा कोई न जो इसकी , लौं में गिर कर न जले
मदमस्त होकर पियेगा प्याला जो , हो जाए मस्त
हर हर गंगे