प्रेम का ज्वार : भाग-२
प्रेम का ज्वार-भाग-२
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समय इसी तरह गुज़रता रहा । मेरा रुझान सिविल सेवा की ओर था , परंतु उसके लिए निर्धारित न्यूनतम आयु से मेरी उम्र काफ़ी कम थी , अतः मैं सोचा करता था कि अभी बहुत समय है तैयारी के लिए। अपने जीवन के ख़ालीपन को भरने के लिए मैंने सोचा कि क्यूँ न एम०बी०ए० की तैयारी की जाय। एम० बी० ए० के बाद भी सिविल सेवा की तैयारी की जा सकती थी । समीर पाण्डेय को तो मैनेजमेण्ट क्षेत्र में जाने की इच्छा थी । अतः उन्हें भी एम०बी०ए० की तैयारी करनी थी । अब हमें जीवन की एक दिशा मिल गयी और हम दोनों ने कैरियर कोचिंग में प्रवेश ले लिया । अब हम चल पड़े एक नूतन पथ पर नयी ऊर्जा के साथ।
पहले दिन कक्षा में हम लोग पढ़ने के लिए बैठ गए । चूँकि जब भी हम किसी नई जगह जाते हैं , तो वहाँ के लोगों को जानने की हमारे अन्दर स्वाभाविक जिज्ञासा होती है । अतः हमने कक्षा में उपस्थित छात्रों का निरीक्षण प्रारम्भ किया । हमने देखा कि भारतीय स्टेट बैंक में दिखी कन्याओं में से एक कन्या भी उस कक्षा में बैठी है । अब तो हम दोनों की बाँछें ही खिल गयीं । हृदय के सुषुप्त अरमान पुनः सक्रिय हो उठे ।
छात्रावास में लौटकर मैंने चिंटू से कहा-” भाई! लगता है कि ईश्वर किसी से मेरा मिलन कराना चाहता है । ” चिंटू ने कौतूहलवश आँख सिकोड़ते हुए पूछा-“क्या हुआ सर”। मैंने उत्तर दिया-” मत पूछो भाई । लेकिन जान ही लो । बैंक में हमारे अन्दर अरमान जगाने वाली तुम्हारी सहपाठिनी अब मेरी सहपाठिनी बन गयी है । वो भी मेरे साथ कोचिंग में है।” इतना सुनते ही चिंटू ने उत्तेजना के साथ तपाक से कहा-” सर वो भी है । तब मैं भी कोचिंग करूँगा।” मैंने कहा-” गुरु तुम काहे कोचिंग करोगे ? तुमको तो एम०बी०ए० में कोई रुचि ही नहीं थी । मैंने तो पहले से ही तुमसे कोचिंग करने को कहा था। लेकिन तब तो किए नहीं । अब एक लड़की के लिए एडमिशन लेकर काहे व्यर्थ में धन और समय की बर्बादी कर रहे हो। वैसे भी जब तुम तीन साल में नहीं कुछ कर पाए तो अब क्या करोगे? अब ईश्वर ने मुझे अवसर दे दिया है । ” चिंटू भाई याचक भाव से बोले-” प्लीज़ सर , मेरा उससे भावनात्मक लगाव है ।” मैं ज़ोर से हँसा और चिंटू से पूछा-” इस भावना का प्रस्फुटन कब हुआ भाई । इतने दिनों का साथ है , कभी बताया तक नहीं । ख़ैर मेरे लिए मित्रता सर्वोपरि है । अतः मैं तुम्हारे समर्थन में अपनी उम्मीदवारी वापस लेता हूँ ।” साथ ही मैंने ये भी जोड़ दिया कि ” भाई मेरे मन में सौंदर्य के जिस उच्च स्तर के प्रतिमान स्थापित हैं , उन पर वो दूर-दूर तक खरी नहीं उतरती है।”
चिंटू ने कोचिंग में प्रवेश ले लिया । अब कोचिंग में तीन मित्र साथ हो गए- समीर पाण्डेय , चिंटू सिंह और मैं। चिंटू कक्षा में पढ़ाई पर कम ध्यान देते थे और काल्पनिक प्रेम सरोवर में डुबकी ज़्यादा लगाया करते थे। ख़ास बात तो ये कि चिंटू भाई को अब तक अपनी नायिका का नाम तक नहीं पता था । हम लोग चिंटू से मज़ाक़ किया करते थे कि “यार जिसके प्रति इतना प्रेम भाव , उसका नाम तक पता नहीं । क्या प्यार है यार!” कुछ दिनों बाद पता चला कि चिंटू भाई की नायिका का नाम टीना सिंह है और वो बोकारो की रहने वाली है । हम लोगों ने ये भी जानकारी हासिल की कि उसकी शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम से हुआ है । चिंटू भाई ठहरे ठेठ पूर्वांचली । मैं उनसे मज़ाक़ में बोला करता था-” भाई आप ठहरे भोजपुरी माध्यम के और वो अंग्रेज़ी माध्यम की ।दोनों के मध्य कुछ ज़्यादा ही अंतराल है। इसको कैसे पाटोगे भाई? अगर हिंदीओ माध्यम के होते , तब्बो ग़नीमत थी।” चिंटू भाई आत्मविश्वास के साथ कहा करते-” सर मैं अपने प्रेम के सेतु से इस खाई को पाट दूँगा।” मगर जब युग्म सम्बन्धों का निर्माण होता है , तब दोनों पक्षों को प्रयास करना पड़ता है। परन्तु यहाँ तो स्थिति भिन्न थी । चिंटू जितना ही टीना की ओर उन्मुख होने का प्रयास करते थे , टीना उनसे उतना ही ज़्यादा विमुख होती जा रही थी। उनके दरमियाँ बनी खाई निरंतर बढ़ती ही जा रही थी। इस यथार्थ को अस्वीकार कर चिंटू टीना को पाने का ख़्वाब संजोये हुए थे।
धीरे-धीरे चिंटू भाई की प्रेम कहानी छात्रावास के कुछ अन्य वरिष्ठ सदस्यों को भी ज्ञात हो गयी थी। उनमें से कुछ लोग कहा करते-” चिंटू भाई , घबराओ मत । हम लोग तुम्हारे साथ हैं। टीना को तुमको स्वीकार करना ही होगा।” इनमे से कुछ लोग शारीरिक रूप से बलिष्ठ भी थे। मैंने चिंटू को अकेले में समझाने का प्रयास किया और कहा-” भाई प्रेम दो लोगों के मध्य होता है । यह तो भावनाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान है । प्रेम दो हृदयों की कोमल भावनाओं का समांगी मिश्रण है।इसमें तृतीय शक्ति को सम्मिलित न करो , नहीं तो कुछ प्राप्त न होगा। शक्ति से प्रेम का भाव पैदा नहीं किया जा सकता है। हाँ , प्रेम में वह शक्ति अवश्य है कि वह बड़े से बड़े शक्तिवान को घुटने टेकने पर विवश कर दे।” परन्तु ऐसा लगता था कि चिंटू भाई का धैर्य अब जवाब दे चुका था । अतः उन्हें मेरी बातें रास नहीं आयीं।
———क्रमशः