प्रेम का उपहार हो तुम
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आधार छन्द- “माधवमालती” (28 मात्रा, मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा
समान्त- “आर, पदान्त- “हो तुम”।
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राम ने मुझको दिया जो, प्रेम का उपहार हो तुम।
थी मरुस्थल जिंदगी, उसमें नदी की धार हो तुम।
अप्सरा हो स्वर्ग की या, हो तुम्ही परियों की’ रानी,
नायिका हो काव्य की या, रूप का श्रृंगार हो तुम।
पुष्प कलियांँ पंखुड़ी हो, या लता लिपटी हुई सी,
भोर की पुरुआ हवा या, सावनी बौछार हो तुम।
देख ले जो इक झलक बस, होश में आये कभी ना,
स्वर्ग से आई धरा पर, कामिनी अवतार हो तुम।
आस कह दूँ, साँस कह दूँ, और धड़कन जान कह दूँ ,
कालिमा सी जिंदगी में, सूर्य का उजियार हो तुम।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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