#रुबाइयाँ
सुन ए बादल दर्दे-दिल की , कहता आज कहानी रे।
मेरी चाहत का बरसा दे , उनके आँगन पानी रे।।
प्रिया हिज़्र में मुश्क़िल मेरा , हाय हुआ है जीना भी;
युग ज्यों बीते एक लम्हा भी , लेकर दर्द निशानी रे।।
उनको क्या मालूम तन्हाई , छेड़े यहाँ जवानी रे।
अश्क़ बहें हैं आँखों से यूँ , जैसे घटा तूफ़ानी रे।।
सोते जगते लम्हा-लम्हा मैं , नाम प्रिया का जपता हूँ;
खाना-पीना भूल गया हूँ , चाह मिलन की ठानी रे।।
पागल-पागल दुनिया कहती , समझ प्यार नादानी रे।
मैं तो पागल भी अच्छा हूँ , मिल जाए गर रानी रे।।
उनका तन-मन छूकर बूँदें , अहसास कराएँ मेरा;
तड़फ उठेगी मिलने को , होकर वो दीवानी रे।।
प्रीतम तेरी उल्फ़त सच्ची , मुझको नहीं भुलानी रे।
झूम-झूम कर बरसूँगा मैं , करने उसे सयानी रे।।
विरह-पीर मैं उसे कहूँगा , नयन-नीर को बरसाकर;
लिए चला मन प्रेम-कहानी , जाकर उसे सुनानी रे।।
#आर.एस.’प्रीतम’