222. प्रेम करना भी इबादत है।
गिले शिकवे भुला कर के प्रेम करना इबादत है।
बड़े लोगो की भी अक्सर यही होती रवायत है।
गिला शिकवा कभी होना,मुनासिब गैर हो सकता।
हमेशा माफ करना पर , सही होती ये आदत है।
नही कोई बड़ा छोटा कभी होता है इंसा में।
मगर हो भाव जब ऐसा ,तो रिश्तों में नजारत है।
अगर हो रूह में जज़्बा ,तो फबती है सूरत भी।
जहां सीरत सुहानी हो ,वही टिकती मुहब्बत है।
अकड़ मुर्दों में रहती है , मगर मधु में लचीलापन,
यही अदबी परे रखती ,सदा हमसे जहानत है।
गुजर जाती है वरना तो जिंदगी शौच मैथुन में।
बिना इंसानियत के तो जिंदगी भी अजीयत है।
मुहब्बत में तो कुर्बानी है पहली शर्त यह जानो।
नफ़ा नुकसान जेहन में तो समझो यह तिजारत है।
गिले शिकवे मिटा दो सब, बदी को छोड़ दो बंधू,
सदा इंसानियत की बस मधु करता वकालत है।
कलम घिसाई