प्रेम एक सहज भाव है जो हर मनुष्य में कम या अधिक मात्रा में स
प्रेम एक सहज भाव है जो हर मनुष्य में कम या अधिक मात्रा में संचरित होता है। यह भ्रम मात्र ही हो सकता है कि अमुक व्यक्ति प्रेम युक्त है, अमुक नहीं।
एक नितांत निरंकुश और अपराध वृत्ति के व्यक्ति का हृदय भी प्रेम शून्य नहीं हो सकता।