प्रेम एक तोहफा है ।
जब हम दो प्रेमी को देखते हैं ,तो जेहन में कई सवाल उठते हैं कि ये प्रेम क्या है बंधन या मुक्ति, जीवन या जहर?प्रेम क्या है? किसी को पाना या खुद को खो देना? एक बंधन या फिर मुक्ति? जीवन या फिर जहर? तमाम विचार उत्पन्न होते हैं । अमूमन मेरे हिसाब से प्रेम एक ‘समर्पण’ हैं । जो दोनों तरफ से होता है ।
खैर मेरे मस्तिष्क में इसके कई उदाहरण है, जो तहलका मचाते रहते है । ‘राधाकृष्ण’ की प्रेम कहानी तो पूरा विश्व जानता , हीर रांझा , मजनू लैला जो हम किताबो और फिल्मों में देख कर समझ जाते हैं , परन्तु ‘नेहरू और एडविना की प्रेम कहानी कोई नही जानता , जो काफी रोचक भी है ।
बात उस समय की थी ,जब भारत का बंटवारा हो रहा था , भारत के अंतिम गवर्नर ‘माउंटबेटन की पत्नी एडविना’ और नेहरू एक दूसरे के करीब आरहे थे ।उनमें से एक आज़ाद हिंदुस्तान का पहला प्रधानमंत्री बनने वाला था और दूसरा इस नए मुल्क के पहले गवर्नर जनरल की पत्नी।कहते हैं ना मोहब्बत वो आतिश है जो लगाए न लगे और बुझाये न बुझे, कब हो जाए, किससे हो जाए, कहां हो जाए और क्यों हो जाए, कोई नहीं जानता । जब यह आग लगी तब जवाहरलाल नेहरू की उम्र 58 थी और एडविना 47 की होने जा रही थीं । लेकिन मोहब्बत तो किसी भी उम्र की हो, बेपनाह ही होती है। इनकी मोहब्बत कोई राधाकृष्ण से कम नही थी, उस समय हिंदुस्तान के राजनैतिक गलियारों में यह मशहूर हो चुका था कि ‘अगर राम के दिल में झांक कर देखें तो सीता मिलेंगी और नेहरू के दिल में अगर झांका तो एडविना ‘ मिलेगी ।
गांधी ने भी प्रेम की प्रशंसा की ,और प्रेम की विशेषताओं की अनुभूति , प्रेम को बाटना सिखया , सत्य,अहिंसा के रूप में प्रेम करना सिखया , उनके अनुसार
“प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह तो हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है।”
जबकि प्रेम की महत्ता भिन्न भिन्न दार्शनिक, राजनीतिक, और कवियों ने अपने पंक्तियों में की है ।
प्रेम तो नि:शब्द है। प्रेम अव्यक्त है। प्रेम का गुणगान संत-महात्मा, विद्वान सभी ने किया है। मीरा ने तो प्रेम में हंसते-हंसते ज़हर भी पी लिया। प्यार सुगंध है और प्यार में ही दुनिया के सारे रंग है। मूल रूप से प्रेम का मतलब है कि कोई और आपसे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो चुका है। यह दुखदायी भी हो सकता है, क्योंकि इससे आपके अस्तित्व को खतरा है। जैसे ही आप किसी से कहते हैं, ’मैं तुमसे प्रेम करता हूं’, आप अपनी पूरी आजादी खो देते है। आपके पास जो भी है, आप उसे खो देते हैं। जीवन में आप जो भी करना चाहते हैं, वह नहीं कर सकते। बहुत सारी अड़चनें हैं, लेकिन साथ ही यह आपको अपने अंदर खींचता चला जाता है। यह एक मीठा जहर है, बेहद मीठा जहर। यह खुद को मिटा देने वाली स्थिति है।
जैसे कबीर भी प्रेम की भवना को अपने शब्दों में लिखते हैं ” कबीरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहीं, सीस उतारे हाथ धर, सो पसे घर माहीं…।'”
खैर वर्तमान में लॉकडाउन की स्थिति है लेकिन हमने भारत के प्रत्येक वेलेंटाइन दिवस पर भारत के बाजारों में एक अजीब से उत्साहन देखी है ।
यह कहना बेहद मुश्किल है कि वेलेंटाइन डे का इंतजार प्रेमियों को ज्यादा रहता है या फिर कार्ड और गिफ्ट बाजार को , जिन गिफ्टों के लिए ‘प्राइसलेस‘ लिखा जाता है वे असल में उतने ही ज्यादा प्राइस के हैं! भारत में कार्ड और फूल से शुरू हुआ वेलेंटाइन डे के तोहफों का कारोबार आज सोने, चांदी और हीरे से होता हुआ अरबों रुपये तक पहुंच गया है । लेकिन प्रेम तो प्रेम है ,अरबो रुपये का ही क्यो ना हो ।
लेकिन मेरे हिसाब से हमे ऐसा तोहफा देना चाहिए जो सच में प्राइसलेस या अनमोल हो जिसे दुनिया का कोई बाजार नहीं बेचता हो । जिसका ऑर्डर आप किसी साइट पर नहीं दे सकते, जिसके मुरझाने, खोने या टूटने-फूटने का डर नहीं, जो कहीं छूट नहीं सकता और जिसे कोई आपसे चुरा नहीं सकता ।वह बेशकीमती तोहफा है ‘”आदत‘ का”।
हमे चाहिए कि तोहफे के रूप में कोई अच्छी आदत डालने का या कोई बुरी आदत छोड़ने का वादा करना चाहिए ।
इसका उदाहरण भी मेरे जेहन में है , की मैंने अपने जन्मदिन पर एक नियम और सिद्धान्त बनाया था । “Read more creat more and invent more ” और अपने जन्मदिन या दोस्तो के जन्मदिन पर उन्हें ‘बधाई देने’ से पूर्व प्रतिदिन की तुलना में ‘दो घण्टे ‘ अधिक पढ़ाई करना । इसकी शुरुवात भी मैंने अपने प्रिय दोस्त से की थी ,पता नही उसे समझ आया कि नही । वैसे भी मेरे दोस्त ये ताना देते हैं तुम्हे समझना ‘1 किलो घी’ खाने के बराबर है ।
अंततः चलते हैं
प्रेम क्या है, अगर समझो तो भावना है,
इससे खेलो तो एक खेल है ।
अगर साँसों में हो तो श्वास है और दिल में हो तो विश्वास है,
अगर निभाओ तो पूरी जिंदगी है और बना लो तो पूरा संसार है ।’
जब भी हम बहुत डिप्रेशन में होते थे तो राहत इंदौरी की शायरी का जिक्र करते थे ,अब मन ही नही करता !
“जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,
जवाब तो दे, मैं कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे ।। तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव मैं तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे ।”