प्रेम ईश प्रसाद है
विधा ?..(चंचरी छंद )
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प्रेम ईश प्रसाद है
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प्रेम रुप भगवान। का,
प्रेम रुप सम्मान का,
प्रेम जीवन सार है,
सुंदर विचार है।
प्रेम बसे परमात्मा,
हर्षित मन औ आत्मा,
प्रेम दीप की बाती,
जगमग दिन राती।
भक्त का भगवान से,
जीव का अवसान से,
सर्वत्र प्रेम पलता,
नियम ईश चलता।
जग का वो रखवाला,
गोकुल का वो ग्वाला,
सबके मन को भाये,
प्रेम गीत गाये।
सत्य मार्ग दिखलाता,
जीवन सुखद बनाता,
प्रेम ! पुण्य का दाता,
मनवा सुख पाता।
प्रेम घटाये दूरी,
रहे नहीं मजबूरी,
प्रेम। ही है तपस्या,
प्रेम ईश शिष्या।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”…
पूर्णतया मौलिक,स्वलिखित, स्वप्रमाणित, अप्रकाशित।
……२२/८/२०१८
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार