प्रेम आराधना
कुछ लिखे संध्या तेरे नाम,
बन जाये बिगड़े हुए काम,
पास नहीं फूटी कौड़ी दाम,
संध्या लेकर आती गोदाम.
संध्या समय में बजते घंटाल,
कौन देखे मुरगाई सी चाल..
पशु पक्षियों पर छाया काल,
बकरे, मुर्गे बलि चढते काल,
आदमी बनता बहुत ही वाचाल,
धार्मिक बनते,भूले मन की चाल
ईश स्तुति गाते, थोड़े बजते गाल,
भर जायें भंडार, हो वे मालामाल.
प्रकृति बाहर की अब लो पहचान
मन स्वभाव पढ़,जाने विधि विधान
हर जीव में जीवन,दिखे एक समान
नर नारी में भेद नहीं एक आसमान,
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस