प्रेमान्तरण तेरा कायान्तरण
ए मोहोब्बत कभी पलट तो करूं बयां तेरी कायापलट ,
तू कहीं राधा कहीं रुक्मणी कभी मीरा बन रही भटक ।
कभी घर की छतों छतों मिली और कहीं चौखट पर ,
तो कभी मिल के ना पूरी न हुई इक आस जीवन भर।
कहीं मात्राओं से बंधी बेहद तो कहीं व्यक्त हुई अनहद,
न कभी रोक सकी इसको कहीं कोई गली कोई सरहद।
कहीं जो मिली अफलातूनी बन दूर रही परिभाषा से परे ,
कहीं एक को अनेकों से तो कहीं अनेकों को रही एक से ।
कभी ख़त की खताओं ने जो की गुस्ताखियां बेहद,
निगोड़ी निगाहों ने मिल दूर की दुश्वारियां जी भर ।
सवाल था मोहब्बत की चाहत का ना कि वस्ल का ,
कभी फूलों से ,पत्थरों से तो कहीं इंतज़ार में मिली ।
कभी अफसानों में कभी बदलते ठिकानों में मिली ,
ए मोहब्बत तू बसी हर दिल में तेरी चर्चा गली गली ।
ए मोहब्बत तुझे ढूंढा किये जहां हम ज़िंदगी भर से ,
पर नज़र आई तो आईने में बेपनाह मुझको मुझी से।
डॉ पी के शुक्ला ,
सिविल लाइन्स , मुरादाबाद . उ प्र .