प्रेममयी बारिश बूँद
हल्की हल्की बारिश की बूँदें
कर देती है सिर से पाँव तक
मेघ से घने श्यामल गेसू गीले
टिप टिप टपकता फिर पानी
गेसुओं के झरने में से झड़कर
मस्तक और आँखों के रास्ते
गोरे गोरे गालों से गुजरते हुए
गिरता उभरे उभरे उभारों पर
उठती मन अंदर उमंग- तरंग
उमड़ता है मधुर प्रेम रस रंग
जाग उठते सोए हुए अरमान
दिलोदिमाग में उठते तूफान
चंचल मन देखे खिले ख्वाब
जिसका नहीं होता है जवाब
खुली आँखे सो जाए जागती
तनबदन में प्रेम अग्न लगाती
सुन्दर लगते भीगे लम्बे बाल
बिछाते जो प्रेम का महाजाल
दिखता रूप लावण्य अपार
नजरों का तीर हो दिल पार
मखमली सा भीगा हुआ बदन
लगाता तन बदन अंदर अग्न
मदहोश करता नहाया यौवन
दृष्टि टिकती गजब का जौबन
विचारों का छिड़ जाता द्वंद्व
अनुराग जीत जाता दबा द्वंद
सुखविंद्र देता प्रेम आमंत्रण
खो जाता है खुद पर नियंत्रण
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली