प्रेमदीप
******* प्रेम का दीप *******
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मिल कर प्रेम का दीप जलाएंगे
नफरत को जड़ से हम मिटाएंगे
माया मोह ठगनी कर बहिष्कार
खुदगर्जियों को पथ से हटाएंगे
प्रेम की बलि चढ़े हैंं प्रेम पथिक
टूटे दिलों को फिर से मिलाएंगे
बंजर वीरान हुई हैं जो वसुंधरा
रंगबिरंगे फूलों से हम महकाएंगे
रवि की तपिश से तपती अवनि
मेघ बरस कर शांत कर जाएंगे
मानवीय पीड़ा से मन व्यथित
मानवता का सबक सिखाएंगे
दुखी,दीन ,दरिद्र,निस्सहायों पर
खुशियों की पुष्पवृष्टि बरसाएंगे
पथभ्रष्ट हुए भटकते राहियों को
दिशा दे कर दशाओं को सुधारेंगे
मनसीरत करुणामयी भाव से
दर दर दयाद्र शोभित करवाएंगे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)