प्रेमगीत
*********** प्रेम-गीत ********
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चुभ न पाए तेरे पैरों में शूल जी,
चूम लूं मैं तेरे अधरों की धूल जी।
गर्म हवा तेरे तन को ना छू पाए,
पीर गम की न तेरे मन को तड़फाए,
हो न जाए कोई भी मुझ से भूल जी।
चूम लूं मैं तेरे अधरों की धूल जी।
सुबह हुई है उम्मीद भी बरकरार है,
संध्या बीती जिया बहुत बेकरार है,
बन जाऊं तेरे आंगन का फूल जी।
चूम लूं मैं तेरे अधरों की धूल जी।
बन संवर के यूं गली में न निकलो,
सुंदर मुख अपना घूंघट से ढक लो,
तेरे खिले यौवन का बनूँ रसूल जी।
चूम लूं मैं तेरे अधरों की धूल जी।
मनसीरत मन तेरे प्रेम में बावरा,
प्यार तेरे का ही मुझको है आसरा,
तेरे बाहों के झूले की हो झूल जी।
चूम लूं मैं तेरे अधरों की धूल जी।
चुभ न पाए तेरे पैरों में शूल जी,
चूम लूं मैं तेरे अधरों की धूल जी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)