प्रीत लगाएं कहीं और पिया।
प्रीत लगाएं कहीं और पिया,
नैन लड़ायें उससे साँवरिया।
दिन भर उसके संग वो रहते,
उसका सारा भार वो सहते,
न देखें जब तक वो उसको,
पलभर का भी चैन न लेते,
उसके सिवा कुछ दिखाई न दिया,
प्रीत लगाएं कहीं और पिया।।
सुबह सबरे जब भी वो उठते,
उसको ही सबसे पहले देखते,
देर रात तक उसको ही वह,
घण्टों अपना समय हैं देते,
इतना मोह दूजे संग न किया,
प्रीत लगाएं कहीं और पिया।।
प्यार तो वो मुझसे हैं करते
और वफ़ा भी हरदम रखते,
यह तो लैपटॉप है उनका,
जिसके बिन वो रह नहीं सकते,
मैंने भी इसको स्वीकार कर लिया,
प्रीत लगाएं कहीं और पिया।।
By:Dr Swati Gupta