प्रीत तो खुद के ही छलक जाने में है….
हर साल बसंत आयेंगे प्रिय
हर साल पतझड़ भी दवे पांव चली आयेगी
हर साल प्रीतम को याद करोगी
हर साल कैसे बिसराओगी
प्रीत न मौसम के आने जाने में है
न प्रीतम यादों के इतराने में है
दिल में आन बसा हो गर प्रीतम
प्रीत तो खुद के ही छलक जाने में है….
~ सिद्धार्थ