प्रीत की डोर
प्रीत की डोर
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क्यूं तुमने मुझसे प्रीत लगाई,
क्यूं जोड़ी मुझसे नेह की डोर ।
क्यूं प्रेम बंधन में मुझको बांधा
क्यूं आलिंगन किया मेरा तुमने।
क्यूं तुमने जोड़ा नाता मुझसे,
क्यूं हृदय में प्रेम अगन जगाई।
क्यूं मेरे क्रंदन को सुनकर प्रिये
मेरे अश्रुओं को पोंछा तुमने।
क्यूं मेरे खालीपन को तुमने,
प्रेम सुधा से अपने है सींचा।
क्यूं मेरे दिल में बसकर तुमने,
प्रेम की मीठी प्यास जगाई।
क्यूं अंतर्मन में बसाकर तुमने,
यादों की लौ को जीवित रखा।
क्यूं मेरे एकाकीपन को तुमने
बनकर जीवन साथी भर डाला।
क्यूं मेरा हाथ थामकर प्रियवर
जोड़ी मुझसे प्रीत की डोर
आने से तुम्हारे मेरे जीवन में
फिर से बहारें आई हैं
रूठ गईं थीं खुशियां सारी
वे सभी लौट कर आईं हैं
भटका भटका जीवन मेरा
एक राह पा गया हो जैसे
अविरल जीवन धारा में बहते
किनारा पा गया हो जैसे
इतने बड़े उपकार के बदले
क्या तुमको करूं मैं अर्पित
बन अनुगामिनी जीवन की
जीवन जो तुमने सफल किया मेरा।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)