“प्रीत की डोर”
खूबियों का कुछ, ओर न छोर,
बँध गई उससे, प्रीत की डोर।
चित्त हो जाता, भाव विभोर।
आ गया जीवन मेँ, चितचोर।।
दे गया, मधुर, एक सौगात,
मेरे मन, उलझी सी इक बात।
हृदय मे, स्पँदन, अविराम,
चैन अब मुझको, दिवस न रात।।
क्षितिज क्यों होता जाता लाल,
व्योम, वसुधा बिन, क्यों बेहाल।
वायु का मद्धिम होता वेग,
समाहित सरस, सहज, सँवाद।।
केश कजरारे, कँचन गात,
अमावस सँग पूनम की रात।
घात पर होता ज्यों प्रतिघात,
बच सकूँ, मेरी कहाँ बिसात।
बात सुनता सबकी, चुपचाप,
जगत मेँ है वह योँ, विख्यात।
मेरे आँगन भी होती काश,
कभी तो बिन मौसम बरसात।।
कभी तो, वही करे शुरुआत,
अधर देखूँ, उसके अभिराम।
दीप “आशा” का, दे आयाम,
कहूँ नयनोँ से, अपनी बात..!
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