प्रीतिमय अंकुर न फूटा ,कहें कैसे प्रात है/ स्वयं को पहचान लो, तब दिव्यता अनुराग है
भाव तज, वह ज्ञान कौआ बन गए,क्या बात है ?
प्रीतिमय अंकुर न फूटा, कहें कैसे प्रात है|
वहाँ रोता है सुजन भी, जहाँ भ्रम की आग है |
स्वयं को पहचान लो, तब दिव्यता अनुराग है|
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता