प्रीतम
प्रीत हमे,सुनल सजनीया,
जिब भए रहल सँभालि।
नेह के नयन भरमाएल,
डहार पाग चाल-मानि॥
बोली बानी भल भासल,
ताहि मनमा लागल पीर।
तोहर सनेह रहलं सहेजि ,
अँगनइ चले बोल मधुराइ ॥
साँझ विहंग बतिया सुनइ,
गगन गहिर भए गेलै !
माधवक नेह बिसार चले,
चित वेदनसँ भरि गेलै!!
सपना सहि होए मीता,
जनी मधु घट भऽ रीता।
जग के चाल बुझइ काली,
नयन भए पाथर सीता॥
प्रीत हमे, सुने सजनीया,
बंधन तोड़ तोँ,नै जाइ।
तोहर भरोसे जीनगी के,
आब अचल नेह जुड़ाइ॥
–श्रीहर्ष—-