प्रीतम दोहा अभिव्यक्ति
किसके आगे कौन है, किसके पीछे कौन।
समय स्वयं देगा बता, रहो देखते मौन।।//1
ख़ुद की मत तारीफ़ कर, करले केवल कर्म।
जैसे को तैसा मिले, यही नियति का धर्म।।//2
मूर्ख मिले नौ हों जहाँ, हारे इक विद्वान।
दशों दिशाओं का लिए, चाहे हो वह ज्ञान।।//3
भारत के इंसान सब, तुल्य सरिस भगवान।
अंध भक्त बनके रहें, वही सिर्फ़ नादान।।//4
भ्रमित हुआ फिरता रहा, जैसे फिरकी एक।
जितना इसको भाव दो, फिरे उसी की टेक।।//5
झूठे को तू झूठ से, सीख हराना मीत।
सच्चे की पर प्रेम से, सीख लीजिए रीत।।//6
प्रीतम तेरे प्रेम का, ऊँचा है आकाश।
जो समझा पाया उसे, सूरज सरिस प्रकाश।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’