प्रीतम दोहावली
रूठ प्रेम कर मीत तू, मगर कहा भी मान।
ग़लत सही देना बता, बनना मत अनजान।।//1
डरना बिलकुल छोड़़ दे, घुलमिल लेना ठान।
धूल उड़े मिल धूल से, बन जाए तूफ़ान।।//2
चुगलखोर से बच सदा, ऐसी है वह आग।
नर नारी जो भी घिरे, जले न पाए भाग।।//3
करके छल ख़ुश जो हुआ, मूर्ख बड़ा इंसान।
झूठी बातों को कभी, मिले नहीं सम्मान।।//4
दर्द बढ़ाकर और का, पाए कैसे चैन।
ख़ुशी मिले उसको यहाँ, जिसके मरहम नैन।।//5
मुझे समझना छोड़़ कर, निज को समझो यार।
उजड़े गुलशन में तभी, आए रंग बहार।।//6
जिसकी जैसी सोच हो, उतना उसका मान।
बुरी बात कायर सुने, बलशाली गुणगान।।//7
आर.एस. ‘प्रीतम’