प्रीतम दोहावली- 3
सत्य तथ्य संसार का, एक यही है घोर।
जन्म-मृत्यु निश्चित यहाँ, निश्चित इनका ठोर।।//1
समय स्थान कारण लिए, रचा मृत्यु का खेल।
हँसकर जीना सीखिये, रखकर सबसे मेल।।//2
ख़ोज स्वयं की कीजिए, जीवन हो ख़ुशहाल।
भ्रम का जीवन मूर्खता, समझ इसे तत्काल।।//3
इच्छाओं की क़ैद में, जीना है बेकार।
मिला ख़ुशी से चूमिए, तभी खिलें दिन चार।।//4
ख़ोज़ सत्य की है यही, रूह कहा तू मान।
मन को पीछे रख सदा, पूर्ण यही है ज्ञान।।5
ज्ञान नहीं जब भ्रम हृदय, समझ तनिक इंसान।
समझे बिन सब गौंण हैं, दौलत पद सम्मान।।//6
मनुज-मनुज से प्रेम का, सीखे जब व्यवहार।
उजड़े गुलशन में तभी, आए रंग बहार।।//7
आर.एस. ‘प्रीतम’