प्रीतम के दोहे
करले प्रत्याहार तू, पाएगा आनंद।
शुभ वाङ्मय पढ़ योग कर, खिलें हृदय में छंद।।//1
ध्यान एक अभ्यास है, तन-मन करता एक।
स्मरण शक्ति को दे बढ़ा, निर्णय क्षमता नेक।।//2
नित्य योग तू कीजिये, महके जीवन सार।
श्वास-श्वास हर्षित करे, मधुबन का ज्यों प्यार।।//3
पाँच तत्त्व में संतुलन, करे सदा उपकार।
बिगड़ गए जो एक भी, करदे जीवन भार।।//4
चुस्त टाँग की पेशियाँ, रक्त दबाव सुधार।
वृक्षासन तू कीजिये, मिले तभी उपहार।।//5
खुशहाली जो चाहिए, करो हमेशा योग।
संग सुनो संगीत भी, लगें नहीं फिर रोग।।//6
जिसने की अहदे-वफ़ा, अमर हुआ इंसान।
सुंदरता पर ही रचे, कालजयी सब गान।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’