#प्रीतम के दोहे
जोश प्रेम के संग में,पुलकित चित उर अंग।
अधरों पर मुस्क़ान हो,जीत सकें हर जंग।।
नीति रीति हो प्रेम की,चखिए प्रेम प्रसाद।
मंगल करता प्रेम सब,हरता मन उन्माद।।
आत्म कहा सब मानिए,वरना होगी हार।
चले हवा विपरीत तो,मंद पड़े रफ़्तार।।
सोच समझकर कीजिए,करना जो भी काज।
ग़लती ख़ुशियाँ लूट ले,खिल्ली उड़े समाज।।
ख़ुशी नहीं षड्यंत्र में,अंत उड़े उपहास।
छल छलता जयचंद को,सदियाँ करें उदास।।
मान नहीं चुगली करे,खुलता खुद का भेद।
नेक कर्म से जीत मन,कभी नहीं फिर ख़ेद।।
पहले ख़ुद ही सीखिए,फिर देना तुम ज्ञान।
फूल रंग बू छोड़ता,खींचे जग का ध्यान।।
#आर.एस.’प्रीतम’
CR–सृजन