#प्रीतम की कुंडलियाँ
#प्रीतम की कुंडलियाँ
झूठी बातें तीर सम, देती गहरा घाव।
कभी हृदय मिलता नहीं, ऐसा हो अलगाव।।
ऐसा हो अलगाव, नहीं बनता फिर नाता।
विष पीकर जग कौन, जीव जीवित रह पाता।।
सुन प्रीतम की बात, करो तुम बात अनूठी।
झुक जाते हैं नैन, पोल खुलती जब झूठी।।
झगड़ा करना मूर्खता, करो कभी मत भूल।
शील संग हो ज्ञान के, दूर दर्द की धूल।।
दूर दर्द की धूल, ख़ुशी पाओ जीवन में।
खिलें प्रेम के फूल, रहे बू घर आँगन में।।
सुन प्रीतम की बात, समझ से मिटता लफड़ा।
देता मन को पीर, हमेशा यारों झगड़ा।।
नीयत अच्छी राखिए, होंगे सारे काम।
जीवन सुधरे आपका, हरपल हो अभिराम।।
हरपल हो अभिराम, कीर्ति पाओ इस जग में।
जैसे सूरज-चाँद, भरें आभा भू नभ में।।
सुन प्रीतम की बात, खिलो खिलाओ तबीयत।
लगे धरा भी स्वर्ग, रहे जब सुंदर नीयत।।
जैसे लकड़ी आग में, यूँ झगड़ालू लोग।
दूर रहो इनसे सभी, करो बुद्धि उपयोग।।
करो बुद्धि उपयोग, मिटें संकट फिर सारे।
जीते जीवन जंग, बनें सबसे हम प्यारे।।
सुन प्रीतम की बात, रहो जीवन में ऐसे।
खिलकर भरें सुगंध, फूल उपवन में जैसे।।
होते हैं दिव्यांग सब, मालिक का ही नूर।
करना नहीं मज़ाक तुम, रखना याद हुज़ूर।।
रखना याद हुज़ूर, स्नेह इनपर बरसाना।
बढ़ा हौंसला जोश, इन्हें जीना सिखलाना।।
सुन प्रीतम की बात, हँसी दिल में जो बोते।
मानव वही मिसाल, सभी होठों पर होते।।
मानव जिसकी जाति है, मानवता है धर्म।
रखता मन में भेद जो, समझे कैसे मर्म।।
समझे कैसे मर्म, भ्रमित निज को क्या जाने।
मूर्ख स्वयं का मूल, नहीं जग में पहचाने।।
सुन प्रीतम की बात, बना फिरता वह दानव।
जिसके अंतर भेद, नहीं सच में वह मानव।।
कवि- आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित सृजन