प्रिय विरह – १
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साजन मैं किससे कहूँ, अन्तर्मन की बात।
पल युग जैसे बीतते, कटें नहीं दिन – रात।। १
अंतर्मन में ली सँजो , पिया मिलन की आस।
साजन आकर मिल मुझे, बुझे हृदय की प्यास।।२
आजा मन के मीत अब,देख रही मैं राह।
इस दिल की तेरे बिना, रही न कोई चाह।। ३
फीकी धानी चूनरी, बहे दृगों से नीर।
बेसुध तन व्याकुल रहे, चुभें याद के तीर।। ४
काले उड़ते मेघ सुन, ले जा यह संदेश।
व्यथित हृदय का दर्द सब, उनको करना पेश। ५
दर्द, कसक हर रोज की,तन्हा दिल बेचैन।
खुली पलक या बंद हो,छवि प्यारी-सी नैन।। ६
दर्द-तड़प-दुख-वेदना, असहनीय ये पीर।
तन जलकर स्याही बनी, साँसे हुई अधीर ।।७
टँगी हुई तस्वीर में,मुस्काते प्रिय आप।
आती-जातीे साँस भी, करती तेरा जाप।। ८
साजन तेरी याद में, बड़ा बुरा है हाल।
तन पर लोटे सर्प सम,डँसे विरह का काल।। ९
प्रियतम अब तेरे बिना, जीवन है जंजाल।
तनहाई डसती सदा, जीना हुआ मुहाल।। १ ०
तड़प गई है आत्मा ,आए जब तुम याद।
हाय कौन-सी दी सजी, प्रिय जाने के बाद।। ११
आँखों से आँसू बहे, अधरों पर फरियाद।
हरपल जी कर मर रही, जीवन बना विषाद।। १ २
गीत-गजल गाती हुई करती तुमको याद
साँसों से करने लगी, अब साँसे संवाद।। १३
दिल तो जलता ही रहा,उन यादों के साथ।
जो संजोई थी कभी , ले हाथों में हाथ।।१४
होकर मुझसे तुम अलग , मुझ में रहे विलीन।
गये दूर जब साजना, लिए नींद भी छीन।। १ ५
खोई गुमसुम – सी रही, सदा याद में लीन।
तुम बिन तन मेरा हुआ, जैसे प्राण विहीन।। १६
मरे हुए जज्बात सब, अंदर तक श्मशान।
कातिल मेरा तू बना , सोच रही हैरान।। १७
क्यूँ इतनी लम्बी हुई, कठिन जुदाई रात।
काल कुएँ में गूँजती, सौदाई की बात।।१ ८
शम्मा बनकर जल रही, हृदय लगी है आग।
क्यों परवाना बेखबर,भूल गया अनुराग।।१ ९
तड़प तड़प दिन बीतता, नहीं गुजरती रात।
तड़पाती मुझको सनम, तेरी दिलकश बात।। २०
मिल जाओ मुझको सनम, सिर्फ यही है प्यास।
दुनिया लगती स्वर्ग-सी, तुम जो होते पास।। २ १
जब भी करती याद प्रिय, तेरी दिलकश बात।
रात बदल जाती सुबह, होती दिन से रात।।२२
तेरी महकी साँस का, होता जब अहसास।
मन में बढ़ जाती सनम, मिलने की फिर आस।।२ ३
राह निहारूँ हर घड़ी, पिया बसे परदेश।
लट उलझी सुलझे नहीं, बिखरे मेरे केश।। २४
इधर-उधर प्रिय ढूँढती, करती खुद से बैन।
जैसे पागल भ्रमर मन, पाए कहीं न चैन।। २५
? ? ? ? –लक्ष्मी सिंह ? ☺