प्रिय भतीजी के लिए…
प्रिय भतीजी के लिए…
उस वृंत की कोंपल तू नन्ही,
जिस पर मैं भी कभी खिली।
है मेरा ही प्रतिरूप तू लाडो,
सूरत तेरी-मेरी कितनी मिली।
रोप दी गई मैं बगिया में दूजी,
यों उत्स से अपने हुई पराई।
रहे न सूना बाबुल का अंगना,
मेरी रिक्त जगह भरने तू आई।
फूली न समाए आज खुशी से,
निरख छवि तेरी ये तेरी बुआ।
नजर लगे न तुझे किसी की,
निकले दिल से बस यही दुआ।
बने तू लाडली सबकी दुलारी,
खिली रहे घर की फुलवारी।
मिलें वही संस्कार तुझे भी,
संग जिनके मैं थी पली-बढ़ी।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
‘दिवित’ से