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16 Dec 2021 · 1 min read

प्रिय की प्रतीक्षा में!

प्रिय.. तुम्हारी प्रतीक्षा में!
जला देतीं हूँ कुछ चिराग,
तुलसी के आसपास!
भर जाता है, रोम रोम में,
तुलसी की सुरभि से लिपटा,
तुम्हारा भाव!
पत्तियों की ओट से झांकती
जलती लौ!
हर लेती है.. मेरा हर अभाव!
मेरे पास रह जाता है,
मेरे शब्दों का पल्लव..
स्वप्न-कोष का कलरव!
तुम्हारे बिना..
मेरा यूँ बीतना!
अपने प्रेम के दरख्त को,
आवेगों से सींचना!
मुझे सहेज लेती है..ये भक्ति,
जीत लेती है मुझे..
तुम्हारे नेह की
अकल्पित दृष्टि!
मेरी मूक पलकों से
बह पड़ती है..
तुम्हारे निश्छल वियोग की..
अभिव्यक्ति!
छलछला पड़ती है..
मेरे साथ साथ,
तुम्हारी सुरभित
स्मृतियों से ढकी..
संपूर्ण सृष्टि!

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

Language: Hindi
245 Views

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