प्रिय उम्मीद
जब तुम आती
बेजान में भी जीवन की श्वास फुक जाती हो।
यकीन न भी हो जिसपे
उस पर भी उम्मीद की किरण छोड़ जाती हो
देकर उम्मीद
बुरे को अच्छा नजरों में बना जाती हो।
हो जितना भी बुरा कोई
उम्मीद अक्सर यही कर जाती हो।
नहीं रहता डर तुम्हें
मगर उम्मीद पे ही कैसे जहां नया तैयार कर जाती हो?
जब तुम आती
बेजान में भी जीवन की श्वास फुक जाती हो।
–Prabha Nirala